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पुलिस के संरक्षण में धधक रहीं अवैध शराब की दर्जनों भट्ठियां

Ballia: ख़बर यू पी के बलिया जनपद के सिकंदरपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत घाघरा (सरयू) नदी का क्षेत्र हमेशा से अवैध शराब, गांजा, हीरोइन और पशु तस्करी के लिए सुरक्षित ठिकाना रहा है। आबादी से दूर नदी के बीच लगे झाड़ झंखाड की वजह से काम और आसान हो जाता है। लिहाजा कारोबारी बिना किसी व्यवधान के अवैध धंधों को संचालित करते हैं। इस अवैध कारोबार को पुलिस का संरक्षण सोने पर सुहागा साबित होता है।

सिकंदरपुर थाना क्षेत्र के खरीद, कठौड़ा, सिसोटर, लीलकर और डुहां में अवैध शराब की दर्जनों भट्ठियां संचालित की जा रही हैं। इन भट्ठियों से रोजाना हजारों लीटर शराब इधर से उधर भेजी जाती है।

यह महज इत्तेफाक नहीं अपितु पूर्ण नियोजित तरीके से किया जाता है। जिसके बदले संबंधित थाने को मोटी रकम चुकाई जाती है। कठौड़ा गांव के सामने सरयू की अथाह जलधारा के बीच स्थित टापू नुमा स्थान

गोरखधंधियों के लिए सबसे ज्यादे सुरक्षित ठिकाना है। कठौड़ा घाट से करीब 2 किमी दूर नदी क्षेत्र में सात से आठ फीट ऊंचे सरपतों के बीच बनाई गई करीब 30 अवैध शराब फैक्ट्रियों तक पहुंचना काफी कठिन और जोखिम भरा है। बरसात और बाढ़ के सीजन में तो यह और भी दुष्कर हो जाता है। पर सरयू की लपकती लहरों के बीच इस दुर्गम स्थान पर कारोबारियों का प्रतिदिन आना जाना है। डेंगियों के सहारे कच्ची शराब बनाने वाले 300 रुपए दिहाड़ी के लिए जान पर खेल कर वहां पहुंचते हैं और पूरे दिन काम कर ढलते सूर्य के साथ माल लेकर वापस आ जाते हैं। यह सिलसिला रोज का है। नदी के दियारा में चल रहे इस अवैध कारोबार का वीडियो सामने आने के बाद जो हकीकत सामने आई वह पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करती है। उधर वीडियो वायरल होने के बाद लोगों का कहना है की वसूली संस्कृति ने आस पास के गांवों की आबोहवा खराब कर दी है। पुलिस का भरपूर समर्थन होने के कारण कोई इनके खिलाफ मुंह नही खोल पाता है।

प्रति माह होती है 11 लाख की वसूली

अवैध शराब कारोबारियों के खिलाफ छोटी मोटी कार्रवाई कर अपनी पीठ थपथपाने वाली पुलिस, वस्तुत: अंदरखाने बहुत बड़ा रैकेट चला रही है। इस कार्य में लगे लोगों ने बताया कि यह सबकुछ पुलिस के संरक्षण होता है। जिसके एवज में 30 से 40 हजार रुपए प्रति माह पुलिस को दिया जाता है। उत्पादन के अनुसार माहवारी तय की जाती है। अधिक उत्पादन करने वालों से 40 हजार तो कम उत्पादक इकाई से 30 हजार रुपए हर माह वसूला जाता है। पैसा इकट्ठा करने की जिम्मेदारी बिट सिपाही की होती है। मसलन स्थानीय पुलिस, इस ठिकाने से औसतन 11 लाख रुपए की वसूली करती है।

विरोध के कारण बदला स्थान

लोगों की जागरूकता और विरोध के कारण धंधेबाजों ने कच्ची शराब निर्माण का स्थान बदल लिया। पहले यह कार्य आबादी वाले क्षेत्रों में ही किया जाता था लेकिन अब नदी के बीच या तटीय क्षेत्रों में किया जा रहा है। ऊंचे सरपतों के बीच धधकती भट्ठियां दूर से नजर नही आती। बिल्कुल नजदीक पहुंचने के बाद ही स्थिति स्पष्ट होती है। सरयू के किनारे बसे खरीद, लीलकर, सिसोटार, सिवानकला, मुस्तफाबाद और डुहा में भी एक दर्जन से अधिक अड्डे सक्रिय हैं। जहां कच्ची शराब तैयार करने का धंधा बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। यही नहीं मुस्तफाबाद, सिवानकला और सिसोटार में ईंट भट्ठों पर भी अवैध शराब बनाई जाती है। जिसके बदले भट्ठा मालिकों से 5 से 6 हजार रूपये वसूला जाता है।

फोटो खिंचवाकर करते हैं औपचारिकता

शराब माफिया के हौसले बुलंद हैं। शिकंजा कसने के लिए जब जिले के आलाधिकारियों द्वारा सख्ती की जाती है तो कार्रवाई के नाम पर औपचारिकता शुरू हो जाती है। पुलिस और आबकारी विभाग के लोग नदी के किनारे व शराब बनाने वाले स्थानों पर पहुंच कर भट्ठियां तोडऩे की औपचारिकता कर फोटो खिंचवा लेते हैं फिर अपने गुर्गों के जरिए सोशल मीडिया पर वायरल करा देते हैं ताकि विभागीय कार्रवाई की वाहवाही लूटी जा सके

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